Sunday 23 April 2017

दहेज़- एक विष...!!!

एक कवि नदी के किनारे खड़ा था ;
तभी वहाँ से एक लड़की का शव
नदी में तैरता हुआ जा रहा था।
तो तभी कवि ने उस शव से पूछा :--

कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
बह रही नदियां के जल में ?

कोई तो होगा तेरा अपना,
मानव निर्मित इस भू-तल मे !

किस घर की तुम बेटी हो,
किस क्यारी की कली हो तुम ?

किसने तुमको छला है बोलो,
क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?

किसके नाम की मेंहदी बोलो,
हांथो पर रची है तेरे ?

बोलो किसके नाम की बिंदिया,
मांथे पर लगी है तेरे ?

लगती हो तुम राजकुमारी,
या देव लोक से आई हो ??

उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
ये रूप कहाँ से लायी हो?
.🎭.........

दूसरा दृश्य :--
कवि की बाते सुनकर
*लड़की की आत्मा बोलती है...*

कवि राज मुझ को क्षमा करो,
गरीब पिता की बेटी हुँ !

इसलिये मृत मीन की भांती,
जल धारा पर लेटी हुँ !

रूप रंग और सुन्दरता ही,
मेरी पहचान बताते है !

कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी,
सुहागन मुझे बनाते है !

पति के सुख को सुख समझा,
पति के दुख में दुखी थी मैं !
🎎
जीवन के इस तन्हा पथ पर,
पति के संग चली थी मैं !
🕯
पति को मेने दीपक समझा,
उसकी लौ में जली थी मैं !
🎨
माता-पिता का साथ छोड
उसके रंग में ढली थी मैं !
⚡
पर वो निकला सौदागर,
लगा दिया मेरा भी मोल !
🏠🚘💎💸
दौलत और दहेज़ की खातिर
पिला दिया जल में विष घोल !
🌹
दुनिया रुपी इस उपवन में,
छोटी सी एक कली थी मैं !
आरम्भ पाण्डेय (शायरसाब)
जिस को माली समझा,
उसी के द्वारा छली थी मैं !
😭
ईश्वर से अब न्याय मांगने,
शव ~ शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !
😷
दहेज़ की लोभी इस संसार मैं,
दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ में !

*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!*

.....................

आरम्भ पाण्डेय (शायरसाब)
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